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क्या आपके शरीर पर बिना चोट लगे नील (नीले निशान) पड़ने लगते हैं? जानिए कारण व इलाज।

आपने ध्यान दिया होगा कि जब कभी शरीर के अंदरुनी हिस्से में चोट लग जाए तो अक्सर स्किन पर नील (नीले निशान) (neel ke nishan) पड़ने लगते हैं। जिन्हें आम बोल चाल की भाषा में नील पड़ना भी कहा जाता है। वही मेडिकल भाषा में इसे कन्टूशन (contusion) या भीतरी चोट कहा जाता है। अक्सर शरीर के किसी हिस्से में चोट लगने पर हमारी ब्लड वेसेल्स (blood vessels) छतिग्रस्त हो जाती हैं। जिसके परिणाम स्वरूप उस जगह पर नीले रंग के निशान पड़ जाते हैं। ऐसा उस जगह पर ब्लड वेसल्स से हुऐ ब्‍लड रिसाव के कारण होता है। इन्हें छूने पर इनमें काफी तेज दर्द भी होता है। लेकिन अब जरा सोचिए आपके शरीर पर बिना कोई चोट लगे यदि नील (नीले निशान) पड़ने लगे हों, तो इसके पीछे क्या कारण हो सकता है। आइए आपको बताते हैं शरीर पर बिना चोट के नील (नीले निशान) पड़ने के पीछे के कारण।

नील (नीले निशान)
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शरीर में बिना चोट लगे (neel ke nishan) नील (नीले निशान) पड़ने के कारण – Reasons for Bruises on Body Without Injury in hindi.

ऐज फेक्टर –

सामान्यतः बढ़ती उम्र के साथ शरीर पर (neel ke nishan) नील (नीले निशान) पड़ने के आम समस्या हो सकती है। खासकर बूढ़े लोगों में इस प्रकार कि समस्या अधिक देखी गयी है। इसके पीछे का कारण होता है कि उम्र भर तपती धूप में कार्य करते हुऐ ब्‍लड आर्टरीज एक उम्र के बाद कमजोर पड़ने लगती हैं। जिसके परिणाम स्वरूप यह एक्टिनिक पर्प्युरा (actinic purpura) कहलाने वाले ये नील, सबसे पहले लाल रंग में फिर पर्पल और उसके बाद गहरे नीले होकर फिर हल्के पड़ने लगते है और फिर गायब हो जाते हैं।

शरीर में पोषक तत्त्वों की कमी –

कम उम्र में शरीर में (neel ke nishan) नील (नीले निशान) पड़ने के पीछे का कारण जरूरी पोषक तत्वों की कमी भी हो सकता है। आजकल के आधुनिक और व्यस्त लाइफस्टाइल में हम अपने खान-पान के प्रति लापरवाह होते जा रहें हैं। जिसका नतीजा शरीर में जरूरी पोषण की कमी हो जाना और शरीर में अचानक से नील पड़ जाना जैसी समस्याओं के रूप में सामने आ रहा है। शरीर को जरूरी पोषण देने के लिए अपने खाद्य पदार्थों में विटामिन के (k), विटामिन सी (c), विटामिन पी (बायोफ्लेविनॉइड) और मिनरल युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करें।

  • विटामिन सी – इसकी कमी से शरीर में नील (नीले निशान) पड़ने लगते हैं। इसका मुख्य काम ब्लड वेसल्स को को चोटिल होने पर रिपेयर करना होता है। शरीर में इसकी कमी होने पर चोट ठीक होने में अधिक समय भी लग सकता है।
  • मिनरल – शरीर में जिंक और आयरन जैसे जरूरी मिनरल्स की कमी एनीमिया जैसी समस्या का कारण बनती है। साथ ही इसकी कमी शरीर में नील (neel ke nishan) पड़ने के पीछे का कारण भी बनती है।
  • विटामिन पी – इसेक बारे में शायद आपने अब तक न सुना हो। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह रूटीन, केटचिन, सिट्रीन और केर्सेटिन कुछ ऐसे बायोफ्लेविनॉइड हैं जो ब्लड वेसल्स को अंदरूनी चोटों से बचाने का काम करते हैं।
  • विटामिन K – यह खून के जमने में मदद करता है और इसकी कमी हो जाने पर सामान्य ब्लड जमने की प्रक्रिया पर प्रभाव पड़ता है।

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थ्रोम्बोफिलिया –

थ्रोम्बोफिलिया एक ऐसी स्थिति है जिसमें स्वाभाविक रूप से ब्लड क्लॉटिंग प्रोटीन्स या क्लॉटिंग फैक्टर्स में असंतुलन होता है। यह ब्‍लड वेसल्‍स में ब्‍लड क्‍लॉट के खतरे को बढ़ा देता है। रक्त का थक्का जमना आमतौर पर एक अच्छी बात है। यदि आप कभी घायल हो जाते हैं तो यह रक्तस्राव को रोकता है। लेकिन थ्रोम्बोफिलिया एक ब्लीडिंग डिस्‍ऑर्डर है जिसमें टीटीपी और आईटीपी प्लेटलेट्स बेहद कम हो जाते हैं। जिसका नतीजा यह होता है कि शरीर में प्‍लेटलेट्स की कमी होने से रक्त थक्का बनने की क्षमता बहुत कम हो जाती है और शरीर पर (neel ke nishan) नील (नीले निशान) पड़ने लगते हैं।

हीमोफीलिया –

हीमोफीलिया एक ऐसी आनुवंशिक बीमारी है जिसमें किसी चोट या दुर्घटना होने पर व्यक्ति की जान पर आ बनती है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस बीमारी में रक्त थक्का बनने कि प्रकिया इतनी कम होती है कि व्यक्ति का ज्यादातर ब्लड बह जाता है। इसका मुख्य कारण व्यक्ति के शरीर में थ्राम्बोप्लास्टिन की कमी होना होता है। थ्राम्बोप्लास्टिक का काम जल्द से जल्द रक्त को थक्के में बदलने का होता है। शरीर में बिना वजह से रक्तस्राव होना या (neel ke nishan) नील पड़ जाना हीमोफीलिया का एक लक्षण है।

एहलर्स-डेन्लस सिंड्रोम –

आनुवंशिक कारणों के चलते शरीर में नील (नीले निशान) पड़ना कोलोजन विकारों के कारण भी संभव है। इस समस्या में नील पड़ने (neel ke nishan) के पीछे का मुख्य कारण कोशिकाओं और रक्तधमनियां का कमजोर पड़ जाना है। जिस कारण यह आसानी से टूट जाती हैं। इस तरह कि समस्या से ग्रसित व्यक्ति के शरीर पर अत्यधिक नीले निशान पड़ना, समय से पहले मृत्यु, घाव देर से भरना, इंटरनल ब्लीडिंग और भ्रूण को नुकसान आदि हैं।

क्या आपको भी हैं इनमें से कोई लक्षण तो आपके शरीर में हो रही है कैल्शियम की कमी।

दवाइयां और सप्लीमेंट –

दवाइयां और सप्लीमेंट के कारण भी शरीर पर नील के निशान पड़ सकते हैं। खासकर ऐसी दवाइयाँ जो कि खून को पतला करने के लिए बनी हों। कई बार इन दवाइयों के सेवन से खून का थक्का नहीं बन पाता। इसके अलावा नैचुरल सप्लीमेंट का अत्यधिक सेवन खून को पतला करने का काम करता है। हालाँकि नैचुरल सप्लीमेंट लेने से खून के पतले होने की संभावना बहुत कम होती है लेकिन यदि आप खून पतला करने कि दवाई भी इस्तेमाल कर रहें हैं तो इन सप्लीमेंट्स का प्रयोग भारी पड़ सकता है और जगह जगह नील निशान पड़ सकते हैं।

कीमोथेरेपी –

यदि आप कैंसर पेशेंट हैं और आपकी चल रही कीमोथेरेपी के कारण आपकी ब्लड प्लेटलेट्स काउंट 400,000 से नीचे आ गया हो, तो आपके शरीर में बार-बार इस तरह के नील के निशान पड़ सकते हैं।

क्या हैं बचाव के तरीके –

  • अपने आहार में मल्टी-विटामिन जरूर शामिल करें।
  • नीले निशान से छुटकारा पाने के लिए 1 टेबल स्पून बेकिंग सोडा में 3 टेबल स्पून पानी मिलाकर निशान पर लगाएं।
  • एलोवेरा का ताजा जैल निकालकर नील पर लगाएं।
  • खीरे के रस को टोनर की तरह इस्तेमाल करें।
  • इन सब उपायों से कोई फर्क न मिले और नील का निशान लम्बे समय तक बने रहने के साथ बड़ा होने लगे और उसमे दर्द भी रहे तो डाक्टर से परामर्श लें।

जानकर रह जायेंगे हैरान! मल्टी विटामिन दवाओं का सेहत पर नहीं कोई सकारात्मक असर।

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