जन्माष्टमी 2019 तिथी को लेकर है असमंजस? पढ़े जन्माष्टमी की तिथि, व्रत पूजन विधि।
pinks tea - August 22, 2019 1628 0 COMMENTS
हर साल की तरह इस साल भी जन्माष्टमी आने वाली है लेकिन इस बार जन्माष्टमी की तिथी को लेकर शुरू से ही काफी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। कुछ विद्वान् पंडितों का मानना है कि इस बार की जन्माष्टमी 23 अगस्त को मनाई जाएगी तो कुछ का कहना है की इस बार जन्माष्टमी 24 अगस्त को मनाई जायेगी।
दरसल प्राचीनकाल से चली आ रही हिन्दू मान्यता के अनुसार विष्णु अवतार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद (भादो माह की कृष्ण पक्ष) की अष्टमी को हुआ था जो कि इस बार दिनांक 23 अगस्त 2019 को पड़ रही है जबकि रोहिणी नक्षत्र इसके अगले दिन यानी कि 24 अगस्त को है इसी कारणवश इस बार अष्टमी और रोहिणी नक्षत्र का संयोग नहीं हो पा रहा है। गृहस्तिथियों और विद्वान पंडितों के द्वारा जन्माष्टमी की जो तिथी निकल कर सामने आ रही है वो है 23 अगस्त 2019।
जन्माष्टमी व्रत विधि –
शास्त्रों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का जन्म मध्य रात्रि में चन्द्रोदय के समय भाद्रपद अष्टमी तिथि को हुआ था अतः व्रती के लिए यही समय व्रत के लिए सबसे अनुकूल माना गया है। इस दिन व्रती को ब्रम्हमुहृत में नहा कर पांचों देवो को नमस्कार कर उत्तर या पूर्व की और मुख होकर आसान ग्रहण करना चाहिये। व्रती हाथ में जल, गंध, पुष्प लेकर व्रत का संकल्प “मम अखिल पापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत करिष्ये” इस मंत्र का उच्चारण करते हुए लें”।
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जन्माष्टमी व्रत पूजा विधि –
* ब्रम्हमुहृत में स्नान कर नये और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
* लड्डू गोपाल जी की मूर्ति को गंगा जल से स्नान करवाएँ।
* बाल गोपाल को दूध, दही, माखन, घी, शक्कर अर्पित करें।
* बल गोपाल को नए व्रस्त पहनाकर उनका श्रृंगार करें।
* रात्रि 12 बजे लड्डू गोपाल को भोग लगाकर विधिवत पूजा करें।
* प्रसाद को घर के सभी सदस्यों में वितरित करें।
* व्रती अगले दिन नवमी को व्रत का पारण करे।
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भगवान् श्रीकृष्ण जी की आरती –
आरती कुंजबिहारी की
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली।
लतन में ठाढ़े बनमाली;
भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक;
ललित छवि श्यामा प्यारी की॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं।
गगन सों सुमन रासि बरसै;
बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग;
अतुल रति गोप कुमारी की॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा।
स्मरन ते होत मोह भंगा;
बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच;
चरन छवि श्रीबनवारी की॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू;
हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद;
टेर सुन दीन भिखारी की॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
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