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करवा चौथ व्रत कथा – Karwa chauth vrat katha.

Karwa chauth vrat katha…हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी करवा चौथ का पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाएगा। हिंदू धर्म में सभी सुहागिन महिलाओं के लिए करवा चौथ व्रत का बहुत महत्त्व होता है। इस दिन महिलाएं अपने पति के लिए निर्जल व्रत का पालन करती हैं। सभी सुहागन महिलाओं के लिए इस व्रत में शृंगार का विशेष महत्व होता है। सभी महिलाएं व्रत तोड़ने से पहले चाँद के दर्शन करती हैं उसके बाद छलनी से अपने पति को देखती हैं। करवा चौथ उन खास व्रतों में से एक है जिसका इन्तजार सभी सुहागन महिलाएं पूरे सालभर करती हैं। इस दिन शिवजी के पूरे परिवार की सम्पूर्ण विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है। करवा चौथ के व्रत के बारे में बात करें तो हमारे हिन्दू धर्म में कई कहानियाँ बेहद प्रचलित हैं। जिनमें से सबसे अधिक प्रचलति है वीरावती की कहानी। जिस तरह से करवा चौथ के इस व्रत में विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना जरूरी है ठीक उसी प्रकार से करवा चौथ व्रत कथा (Karwa chauth vrat katha) सुनना भी अनिवार्य माना जाता है।

 Karwa chauth vrat katha
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करवा चौथ व्रत कथा – Karwa chauth vrat katha

जैसा की हमने आपको बताया कि जितनी जरूरी करवा चौथ की पूजा अर्चना होती है उतना ही जरूरी होता है करवा चौथ व्रत कथा सुनना। इसलिए आज हम आपके लिए लेकर आए हैं बेहद लोकप्रिय करवा चौथ व्रत कथा (Karwa chauth vrat katha)। व्रत वाले दिन इसे सुन कर अपने व्रत को सफल बनाएं। आईये जानते हैं करवा चौथ व्रत कथा…

Karwa chauth vrat katha…बहुत समय पहले, इंद्रप्रस्थपुर शहर में वेद शर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था। वेद शर्मा का विवाह लीलावती नामक स्त्री से खुशी-खुशी समंपन्न हुआ था। विवाह के पश्चायत इस दम्पति को सात पुत्र और एक पुत्री की प्राप्ति हुई। ब्रह्मण की पुत्री का नाम वीरावती था जो की सात भाइयों में अकेली बहन होने के कारण सबकी बहुत लाड़ली थी। सिर्फ वीरावती के भाई ही नहीं बल्कि उसके माता-पिता भी उसे बेहद प्यार करते थे।

समय के साथ जब ब्राह्मण की पुत्री बड़ी होने लगी तो पिता को उसके विवाह की चिंता सताने लगी। उन्होंने अपनी लाड़ली के लिए एक योग्य ब्राह्मण लड़का ढूंढ उसका विवाह उसके साथ सम्पन्न किया। विवाह के बाद, जब पहला करवा चौथ आया तब वीरावती अपने घर आ गयी। वीरावती ने पूरे विधि-विधान के साथ (Karwa chauth vrat katha) करवा चौथ का व्रत रखा। सांयकाल को जब परिवार के सभी सदस्य भोजन ग्रहण करने बैठे तो वीरावती को भी उन्होंने साथ में भोजन ग्रहण करने के लिए कहा। लेकिन वीरावती ने यह कह कर भोजन करने से मना कर दिया कि उसने आज अपनी पति की लम्बी उम्र की कामना के लिए करवा चौथ का व्रत (Karwa chauth ka vrat) रखा है। व्रत के दौरान वीरावती भूख नहीं सह पाई और कमजोरी के कारण वह बेहोश हो जमीन पर गिर गई।

सभी भाई अपनी आराध्य बहन की दयनीय स्थिति को सहन नहीं कर पा रहे थे। वे जानते थे कि वीरावती, एक पतिव्रता है और वह तब तक कोई भोजन और जल ग्रहण नहीं करेगी, जब तक कि वह चंद्रमा के दर्शन नहीं कर लेती। चूँकि उस दिन चाँद निकलने में अभी बहुत देरी थी और वीरावती भूख से व्याकुल कमजोर हो चली थी। अतः सभी भाइयों ने मिलकर अपनी बहन का व्रत तोड़ने (Karwa chauth vrat katha) का निर्णय लिया। एक भाई छलनी और दीपक को दूर एक पेड़ के ऊपर रख आया। जब वीरावती को होश आया, तो बाकी भाइयों ने उसे बताया कि चाँद उग आया है और उसे देख तुम अपना व्रत तोड़ लो।

वीरावती ने दूर वट वृक्ष पर छलनी के पीछे रखे दीपक को देखा तो दूर से उसे वह चाँद की रौशनी के समान प्रतीत हुआ। वीरावती ने यह मानकर की दूर वृक्ष के पीछे चाँद निकल आया, उसे अर्घ्‍य देकर (Karwa chauth vrat katha) व्रत तोड़ लिया और भोजन ग्रहण किया। जैसे ही वीरावती ने भोजन करना शुरू किया तो उसे सभी तरह के बुरे शगुन मिलने शुरू हो गए। पहला कौर मुँह में डालते ही उसमें बाल निकल आते हैं, दूसरे कौर में उसे छींक आती है और तीसरे कौर में उसे ससुराल से निमंत्रण मिला। ससुराल पहुँचने के बाद उसे अपने पति का मृत शरीर मिलता है।

अपने पति के मृत शरीर को देखकर वीरावती रोने लगी और करवा चौथ के व्रत (Karwa chauth ka vrat) के दौरान कुछ गलती करने के लिए खुद को दोषी मानती है। वह असंगत रूप से विलाप करने लगती है। उसका विलाप सुनकर, देवी इंद्र की पत्नी इंद्राणी वीरावती को सांत्वना देने धरती पर पहुँचती है।

वीरावती ने इंद्राणी से पूछा कि (Karwa chauth ka vrat) करवा चौथ के दिन उसे ऐसा भाग्य क्यों मिला और उसने अपने पति को जीवित करने की भीख मांगी। वीरावती के पश्चाताप को देखते हुए, देवी इंद्राणी ने उसे बताया कि उसने चंद्रमा को अर्घ (प्रसाद) दिए बिना उपवास तोड़ा और जिस कारण उसके पति की असामयिक मृत्यु हो गई। इंद्राणी ने वीरावती को करवा चौथ के व्रत (Karwa chauth vrat katha) सहित पूरे महीने में चौथ का व्रत रखने की सलाह दी और आश्वासन दिया कि उसका पति जीवित वापस आ जाएगा। उसके बाद वीरावती ने पूरे विश्वास और सभी अनुष्ठानों के साथ मासिक उपवास मनाया। अंत में उन उपवासों का पुण्य संचय करने के कारण वीरावती को उसका पति वापस मिल गया। आपको बता दें कि इसके अलावा भी (Karwa chauth vrat katha) करवा चौथ की अन्य कई कथाएं भी प्रचलित हैं।

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